नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम (Prevention of Corruption Act) से जुड़ी एक अहम टिप्पणी में कहा है कि यदि किसी लोक सेवक से कथित रिश्वत की राशि (tainted money) बरामद होती है, तो यह अपने आप में उसे दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अभियोजन को यह सिद्ध करना होगा कि आरोपी ने घूस की मांग की थी और उसे स्वेच्छा से स्वीकार किया था।
न्यायालय ने कहा कि भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा 7 और 13(1)(d) के तहत दोषसिद्धि के लिए केवल रकम की बरामदगी नहीं, बल्कि स्पष्ट मांग और स्वीकृति का प्रमाण आवश्यक है। यदि ये दोनों बातें सिद्ध नहीं होतीं, तो धारा 20 के अंतर्गत जो अभियोजन को समर्थन देने वाली कानूनी धारणा (presumption) होती है, वह लागू नहीं होगी।
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “केवल चिह्नित नोटों की बरामदगी यह साबित नहीं करती कि आरोपी ने उन्हें रिश्वत के रूप में लिया। जब तक यह साबित न हो कि पैसे की मांग की गई थी और आरोपी ने उन्हें घूस के रूप में लिया, तब तक दोषसिद्धि नहीं हो सकती।”
यह रुख पहले भी कई उच्च न्यायालयों द्वारा अपनाया जा चुका है। बॉम्बे हाई कोर्ट, पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट और झारखंड हाई कोर्ट ने भी इसी प्रकार की टिप्पणियाँ की हैं कि रिश्वत की मांग के प्रमाण के बिना केवल बरामद राशि से सजा नहीं दी जा सकती।