रिम्स में लचर व्यवस्था की बलि चढ़ा नवजात बिरहोर, 40 मिनट तक नहीं मिला बेड, एंबुलेंस में तोड़ा दम
#JusticeForBirhorBaby ट्रेंड करने लगा है।

रांची, 12 जून:
राजधानी रांची स्थित रिम्स (राजेन्द्र आयुर्विज्ञान संस्थान) एक बार फिर अपनी लापरवाह स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण सवालों के घेरे में है। बिरहोर समुदाय के एक नवजात शिशु ने सोमवार को अस्पताल के बाहर एंबुलेंस में दम तोड़ दिया, क्योंकि उसे 40 मिनट तक वेंटिलेटर सपोर्ट नहीं मिल सका — जबकि अस्पताल में वेंटिलेटर खाली थे।
परिजनों का आरोप है कि अस्पताल प्रशासन ने “बेड उपलब्ध नहीं है” कहकर उन्हें घंटों इंतजार में रखा। इस दौरान नवजात बच्चा एंबुलेंस में ही जिंदगी और मौत से जूझता रहा।
जान गई, जवाबदेही नहीं!
बिरहोर जैसे वंचित समुदाय के लिए यह हादसा सिर्फ एक जीवन की क्षति नहीं, बल्कि सिस्टम की क्रूरता का प्रतीक है। अस्पताल प्रशासन का तर्क है कि “प्रक्रिया पूरी होने में समय लगा”, लेकिन सवाल यह है — जब वेंटिलेटर खाली था, तो क्यों नहीं तुरंत इलाज शुरू हुआ?
मीडिया को अस्पताल से दूर रखने की कोशिश
इस घटना के बाद जब मीडियाकर्मी सच्चाई उजागर करने अस्पताल पहुंचे, तो उन्हें भीतर जाने से रोक दिया गया। सवाल उठता है — अगर व्यवस्था पारदर्शी है, तो पत्रकारों को क्यों रोका गया?
डॉक्टर-मंत्री चुप, जनता गुस्से में
स्वास्थ्य मंत्री और अस्पताल प्रबंधन अब तक चुप्पी साधे हुए हैं। उधर सोशल मीडिया पर लोग प्रशासन की निंदा कर रहे हैं। ट्विटर पर #JusticeForBirhorBaby ट्रेंड करने लगा है।
अब क्या?
क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी?
क्या वंचित समुदायों को भी प्राथमिकता मिलेगी?
और सबसे जरूरी — क्या किसी और बच्चे की जान बच सकेगी?
यह हादसा हमें मजबूर करता है पूछने के लिए:
“अगर मीडिया को रोक दिया जाए, तो सच्चाई कौन दिखाएगा?”
“अगर गरीबों को इलाज नहीं मिलेगा, तो फिर अस्पताल किसके लिए हैं?”