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“कुलुम्बाद: 21वीं सदी के सपनों में धंसा ‘सड़कहीन’ गांव”

 

रिपोर्ट: मंटू कुमार यादव, जमुआ विधानसभा क्षेत्र

 

झारखंड के जमुआ विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत पंचायत खटौरी के कुलुम्बाद गांव ने आज भी वो “सपना” नहीं छोड़ा है, जिसमें एक दिन उनके गांव में पक्की सड़क बन जाएगी। हाँ, वही पक्की सड़क — जो नेता जी हर चुनाव से पहले घोषणा करते हैं और हर चुनाव के बाद भूल जाते हैं।

 

गांव का वार्ड संख्या 13 अब शायद किसी गिनती में नहीं आता। सरकार की योजनाओं में ये जगह गूगल मैप पर “अज्ञात लोकेशन” बन चुकी है — जहाँ पहुंचने के लिए खुद भगवान को भी जीपीएस की ज़रूरत पड़े।

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🌧️ बारिश में गाँव का रास्ता नहीं, स्विमिंग पूल बन जाता है।

गाड़ियाँ क्या, बैलगाड़ी भी फिसल जाती है। और अगर कोई बाइक से निकले तो समझिए उसने रेस्लिंग में हिस्सा लेने की तैयारी कर ली है।

 

🚑 बीमारों के लिए एंबुलेंस नहीं, भगवान भरोसे एंट्री

यहाँ मरीज अगर ज़िंदा अस्पताल पहुंच जाए तो डॉक्टर से पहले उसे भगवान का धन्यवाद देना चाहिए, जिसने उसे कीचड़ एक्सप्रेस में यात्रा के दौरान फिसलने से बचाया।

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👧 स्कूली बच्चे या साहसी योद्धा?

बच्चे जब स्कूल जाते हैं तो उनके जूते और कपड़े कीचड़ से ऐसे रंगे होते हैं जैसे उन्होंने होली खेली हो — वो भी बिना किसी अबीर-गुलाल के।

 

🚶‍♂️ गांववाले ‘अतिथि देवो भव’ को अब ‘सड़क देवो भव’ से बदल चुके हैं।

अब तो गाँववालों ने नेताओं के आने की भी उम्मीद छोड़ दी है — क्योंकि उन्हें पता है, कच्चे रास्ते में नेता जी की चमचमाती गाड़ी भी गड्ढों में फँस जाती है और वादे भी।

 

📣 “अब बस और नहीं!” – ग्रामीणों की हुंकार

ग्रामीणों का कहना है कि अब ये मांग नहीं, आंदोलन की आग बन चुकी है। पक्की सड़क अब सम्मान का मुद्दा है, सिर्फ सुविधा का नहीं।

 

👉 सरकार, जनप्रतिनिधि, और विभागीय अधिकारी कृपया ध्यान दें —

“अगली बार वोट मांगने आने से पहले, जूते अच्छे और कपड़े पुराने पहन कर आइए, क्योंकि इस बार कीचड़ में भी सवाल पूछे जाएंगे।”

 

📌 कुल मिलाकर कुलुम्बाद की सड़क कोई सड़क नहीं, लोकतंत्र की हालत का आईना है।

 

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