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गिरिडीह में अवैध बालू उत्खनन चरम पर, प्रशासन बना मूक दर्शक…..

गिरिडीह, झारखंड: जिले में इन दिनों अवैध बालू उत्खनन का खेल खुलेआम खेला जा रहा है। डुमरी, राजधनवार, बलखंजो, जमुआ, पीरटांड़, देवरी और बेंगाबाद समेत कई इलाकों में बालू माफिया बेधड़क मशीनों और भारी वाहनों के जरिए बालू की ढुलाई कर रहे हैं। यह सब कुछ जिला प्रशासन और खनन विभाग की आंखों के सामने हो रहा है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर केवल औपचारिकताएं निभाई जा रही हैं।

दिन-रात चल रही बालू तस्करी
स्थानीय सूत्रों की मानें तो प्रतिदिन सैकड़ों ट्रैक्टर, हाईवा और अन्य भारी वाहन नदियों से बालू भरकर निकलते हैं। कई स्थानों पर रात के अंधेरे में यह गतिविधियां और भी तेज हो जाती हैं, जिससे साफ है कि प्रशासन की निगरानी या तो कमजोर है या मिलीभगत के चलते निष्क्रिय है।

प्रशासनिक चुप्पी पर उठे सवाल
ग्रामीणों का आरोप है कि यह गोरखधंधा अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है। कई बार शिकायतें करने के बावजूद न तो पुलिस कोई ठोस कार्रवाई करती है और न ही खनन विभाग सक्रियता दिखाता है। इससे स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश है।

प्राकृतिक संसाधनों पर संकट
अवैध तरीके से मशीनों से की जा रही बालू निकासी ने नदियों की जैव विविधता और तटीय संरचना को गंभीर क्षति पहुंचाई है। इससे जलस्तर में गिरावट, भू-स्खलन और संभावित बाढ़ जैसे संकट बढ़ते जा रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यह पारिस्थितिकीय संतुलन के लिए एक गंभीर खतरा है।

सरकार को हो रहा राजस्व का नुकसान
यह अवैध कारोबार न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि सरकार को हर साल करोड़ों रुपये के राजस्व से भी वंचित कर रहा है। बालू का वैध खनन न होने से टैक्स और शुल्क की भारी चोरी हो रही है।

स्थानीय जनता की मांग
इस पूरे प्रकरण से त्रस्त ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों ने निम्नलिखित मांगें की हैं:

अवैध खनन क्षेत्रों पर ड्रोन व CCTV कैमरों से निगरानी की जाए।

बालू माफियाओं के खिलाफ कड़ी और त्वरित कार्रवाई हो।

पुलिस और खनन विभाग की भूमिका की निष्पक्ष जांच कराई जाए।

जिले में विशेष टास्क फोर्स का गठन कर निगरानी और नियंत्रण व्यवस्था को मजबूत किया जाए।

यदि जल्द ही इस पर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह समस्या एक गंभीर पर्यावरणीय संकट और सामाजिक असंतोष का कारण बन सकती है।

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